जन्म देने वाले हमारे पिता



पिता खुदा की नेमत है,
पिता समझ का दरिया।  
पिता से है छांव सिर पर, 
वह राहत का जरिया।।
ये पंक्तियां भी पिता के महान व्यक्तित्व के महत्व का रेखांकित करने में असमर्थ हैं, क्योंकि पिता का अस्ति‍त्व मात्र ही संतान के लिए ब्रह्मांड से भी व्यापक है और सागर से भी गहरा। उनके अनकहे शब्द भी खुद में कई शब्दों को समेटे हैं और उनकी हर एक बात में अनेक सबक हैं। उनकी परछाई में सुरक्षा की राहत है तो उनके कदमों में जन्नत के निशां...। 

बच्चे का अपने माता-पिता से सबसे गहरा नाता होता है। मां से भावनाओं का जुड़ाव, तो पिता से समझ का। मां की ममता और करुणाशीलता तो जगजाहिर है, लेकिन कई बार पिता की अनकहे शब्द और जता न पाने की आदत उनके भावों को ठीक तरह से अभिव्यक्त नहीं कर पाती और हम पिता को जरूरत से ज्यादा सख्त और भावनाविहीन मान बैठते हैं।
लेकिन सच तो ये है कि एक मां बच्चे को जितना प्रेम करती है, उतनी ही चिंता पिता को भी होती है। बस फर्क इतना होता है कि मां के प्रेम का पलड़ा भारी होता है और पिता के सुरक्षात्मक रवैये का, जो कई बार बच्चों को कठोर लगने लगता है। मां हमेशा दुलारती है और पिता हमेशा आपको बनाते हैं, आपके व्यक्तित्व को संवारते हैं।

 I MISS YOU ALWAY'S PAPA....... 

आपके जज्बात और आपकी दी हुई तासीर हमेशा मेरे ज़हन मै रहेगी ईश्वर आपको उसकी हुकूमत में वो सब कुछ दे.
जो आपको आपके परिवार से ना मिल सकी.. . . . . . . . . माफ़ करना मेरी गलतियों को और माफ़ करना क्यों की मैं आपको कभी अलविदा नहीं कह सकता !
                                     आप जहा भी हो हर वक़्त मेरे साथ हो !

                                                              आपके  
                                                                         SONU-2  & फैमिली 

स्वर्गीय श्री श्री श्री सत्यनारायण जी माथुर साहब 

अवतरण 05 अगस्त 1961 देहावसान 10 मई 2017

मेरे परम पूजनीय माताजी व स्वर्गीय पिता श्री 
जयसमंद झील पर प्रथम बार पिताजी क साथ 


श्रद्धा दिल में राखिये, चरणन में शीश नवाय,

इनके आशीर्वाद से, सब जन्म सफल हो जाय।
पिता हमेशा उस कुम्हार की तरह होता है, जो ऊपर से आपको आकार देता है और पीछे से हाथ लगाकर सुरक्षात्मक सहयोग। 
अगर पिता के प्रेम को जानना चाहते हैं तो आप कितने भी बड़े क्यों न हो गए हों, एक बार अपने बचपन में लौट आइए और देखिए कि कैसे पिता ने आपको साइकल चलाना सिखाया था, कैसे आपके हर उस सवाल का उन्होंने बड़े ही रोचक ढंग से जवाब दिया था जिन्हें अब सुनकर आप शायद चिढ़ जाते हैं और उनकी बात का जवाब देना जरूरी नहीं समझते। कैसे वे आपके सामने झुककर घोड़ा या हाथी बन जाया करते थे और आपकी मुस्कान से उनकी पीठ का वह दर्द भी गायब हो जाता था, जो आपके वजन के कारण हुआ था, कैसे आपकी हर छोटी से छोटी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए वे अपनी जरूरतों से समझौता कर लिया करते थे, आपके होमवर्क और प्रोजेक्ट के लिए कैसे आपके साथ वे भी देर तक जागते और उसे पूरा करवाते थे, कैसे वे आपकी छोटी-सी सफलता को भी जहान की सबसे बड़ी खुशी के रूप में मनाते थे। 
कैसे वे आपको स्कूल छोड़ने और लेने जाया करते थे और रास्ते में आपकी हर फरमाइश पूरी हुआ करती थी। हर शाम ऑफिस से लौटते हुए कई बार, बिन मांगे ही वे आपकी पसंद की चीजें ले आया करते थे। उनके लि‍ए केवल आपकी खुशी अनमोल थी।
अब जरा वापस लौटकर आइए इस दुनिया में और सोचिए कि पिता क्या है। सिर्फ एक पिता या आपको समझने वाला सच्चा दोस्त, आपका सहायक, पालक या फिर खुदा की नेमत।>

1.

चट्टानों सी हिम्मत और
जज्बातों का तुफान लिए चलता है,
पूरा करने की जिद से ‘पिता’

दिल में बच्चों के अरमान लिए चलता है।

2.

बिना उसके न इक पल भी गंवारा है,
पिता ही साथी है, पिता ही सहारा है।
3.
न मजबूरियाँ रोक सकीं
न मुसीबतें ही रोक सकीं,
आ गया ‘पिता’ जो बच्चों ने याद किया,
उसे तो मीलों की दूरी भी न रोक सकी।
4.

हर दुःख हर दर्द को वो
हंस कर झेल जाता है,
बच्चों पर मुसीबत आती है

तो पिता मौत से भी खेल जाता है।

5.

बेमतलब सी इस दुनिया में
वो ही हमारी शान है,
किसी शख्स के वजूद की

पिता’ ही पहली पहचान है।

6.

जलती धूप में वो आरामदायक छाँव है
मेलों में कंधे पर लेकर चलने वाला पाँव है,
मिलती है जिंदगी में हर ख़ुशी उसके होने से

कभी भी उल्टा नहीं पड़ता ‘पिता’ वो दांव है।

7.

उसकी रातें भी जग कर कट जाती हैं
परिवार के सपनों के लिए,
कितना भी हो ‘पिता’ मजबूर ही सही

पर हमारी जिंदगी में इक ठाठ लिए रहता है।

8.
न रात दिखाई देती है
न दिन दिखाई देते हैं,
‘पिता’ को तो बस परिवार के
हालात दिखाई देते हैं।
9.

कमर झुक जाती है बुढापे में उसकी
सारी जवानी जिम्मेवारियों का बोझ ढोकर,
खुशियों की ईमारत खड़ी कर देता है ‘पिता’

अपने लिए बुने हुए सपनों को खो कर।

10.

परिवार के चेहरे पे ये जो मुस्कान हंसती है,
‘पिता’ ही है जिसमें सबकी जान बस्ती है।
11.

बिता देता है एक उम्र
औलाद की हर आरजू पूरी करने में,
उसी ‘पिता’ के कई सपने

बुढापे में लावारिस हो जाते हैं।

12.
सख्त सी आवाज में कहीं प्यार छिपा सा रहता है उसकी रगों में हिम्मत का एक दरिया सा बहता है,
कितनी भी परेशानियां और मुसीबतें पड़ती हों उस पर हंसा कर झेल जाता है 
‘पिता’ 
किसी से कुछ न कहता है।


जाते जाते वो अपने जाने का गम दे गये…


सब बहारें ले गये रोने का मौसम दे गये…

ढूंढती है निंगाह पर अब वो कही नहीं

अपने होने का वो मुझे कैसा भ्रम दे गये…



मुझे मेरे पापा की सूरत याद आती है…



वो तो ना रहे अपनी यादों का सितम दे गये…



एक अजीब सा सन्नाटा है आज कल मेरे घर में…



घर की दरो दिवार को उदासी पेहाम दे गये…



बदल गयी है अब तासीर, तासीरी जिन्दगी की…



तुम क्या गये आंखो में मन्जरे मातम दे गये…


13.

तोतली जुबान से निकला पहला शब्द
उसे सारे जहाँ की खुशियाँ दे जाता है,
बच्चों में ही उसे नजर आती है जिंदगी अपनी

उनके लिए तो ‘पिता’ अपनी जिंदगी दे जाता है।

14.

उसके लफ्जों को कभी गलत मत समझना
कि उसके हर अलफ़ाज़ में एक गहराई होती है,
न समझना उसकी हरकतों को अपने लिए परेशानियाँ तुम

तुम्हारे लिए तो ‘पिता’ ने दिल में एक दुनिया बसाई होती है।

15.

उसके हाथ की लकीरें बिगड़ गयी
अपने बच्चों की किस्मतें बनाते-बनाते,
उसी ‘पिता’ की आंखों में आज

कई आकाशों के तारे चमक रहे थे।

  • पिता क्या है ? पिता के महत्व पर एक छोटी कविता |
पिता एक उम्मीद है, एक आस है
परिवार की हिम्मत और विश्वास है,
बाहर से सख्त अंदर से नर्म है
उसके दिल में दफन कई मर्म हैं।
पिता संघर्ष की आंधियों में हौसलों की दीवार है
परेशानियों से लड़ने को दो धारी तलवार है,
बचपन में खुश करने वाला खिलौना है
नींद लगे तो पेट पर सुलाने वाला बिछौना है।
पिता जिम्मेवारियों से लदी गाड़ी का सारथी है
सबको बराबर का हक़ दिलाता यही एक महारथी है,
सपनों को पूरा करने में लगने वाली जान है
इसी से तो माँ और बच्चों की पहचान है।
पिता ज़मीर है पिता जागीर है
जिसके पास ये है वह सबसे अमीर है,
कहने को सब ऊपर वाला देता है ए संदीप
पर खुदा का ही एक रूप पिता का शरीर है

 


बंजर है सपनों की धरती

पला पोसा बड़ा किया, कष्ट दिया न कोय,
अपनी तो संतान की चिंता, हर माँ-बाप को होय।
यही जीवन का सार है, यही हैं पालनहार,
आज्ञा में जो रहे इनकी, सब खुशियाँ मिलती तोय।

चाहे तपती धुप हो, चाहे अंधियारी रात,
साथ कभी न छोड़ते, अस माँ-बाप की जात।

माँ तो लोरी देत है, पिता देत हैं डांट,

मिलकर तबहुं रहत है, खाते हैं मिल बांट।
मात-पिता रक्षक हैं मेरे, मात-पिता भगवान,
इनके बिना न रहत है, मानव जीवन आसान।

छलावा है संसार ये, पकड़ हाथ दे छोड़,
माँ-बाप रहे संग सदा, चाहे जो हो जीवन मोड़।

पिता से ही सुख-संपदा, माँ से है संस्कार,
जिस घर में न ये रहें, वो घर है बेकार।

इश्वर के अस्तित्व पे काहे करे विचार,
घर में ही तो रहत हैं, वेश माँ-बाप का धार।

वाद-विवाद तू छोड़ के, जो नतमस्तक होय,
मान बाप के आशीर्वाद से, 
सब काम सफल फिर होय।
परवरिश का ही खेल है, 
जो हुए सौभाग्य से मेल,
माँ-बाप न होते जो जीवन में, जीवन बन जाता जेल।


प्रेम, प्रेम हर कोई करे, अर्थ न जाने कोई,
जो मात-पिता के शरण रहे, 
वही प्रेममय होय।
सेवा कर के पुण्य कमाइए, 
माँ-बाप को ख़ुशी फिर होय,
राह खुले जीवन का सदा, संकट रहे न कोय।

दस-दस संतान भी पाल ली, जब तक था माँ-बाप का दस-दस संतान भी पाल ली, जब तक था माँ-बाप का राज
कर्ज न उतार सके कोई, कर ले कितने भी काज।राज
कर्ज न उतार सके कोई, कर ले कितने भी काज।

जीवन की सच्चाई है, बात नहीं ये आम,माँ-बाप की सेवा ओ करी, तो हो गए चारों धाम।


चेहरे की इन झुर्रियों के पीछे
कई हसीन दास्तान हैं,
बंजर है सपनों की धरती
उम्मीदों का सूखा आसमान है।
बीते वक़्त का कारवां साथ चलता है
दिल में कहीं एक छोटा सा दर्द पलता है,
ख्वाहिशों का बोझ लिए जिंदगी में
एक-एक कर हर अरमान जलता है,
बोझिल सा लगता है जीवन
हर पल सब्र का इम्तिहान है,


बंजर है सपनों की धरती
उम्मीदों का सूखा आसमान है।
कभी जो परिवार के बाग़ का माली था
आज उसकी झोली खली है,
न जाने कैसी सभ्यता है
अनपढ़ बाप अब लगता गाली है,

एक वक़्त की रोटी देना भी
अब तो समझते एहसान हैं,
बंजर है सपनों की धरती
उम्मीदों का सूखा आसमान है।






कभी खांसी, कभी बुखार,
कभी मौसम की मार है,
थोड़ी बहुत तसल्ली छीने
अपनों का अत्याचार है,

जिसे पालने में जान लगा दी
उसे न जाने किस बात का गुमान है,
बंजर है सपनों की धरती
उम्मीदों का सूखा आसमान है।

दौलत के नहीं है प्यार के भूखे
हर पल अपनों का रास्ता देखे,
खली पेट रहकर थे पाले

आज वही देते हैं धोखे,
खून का रिश्ता था जिनसे
वो आज बने अनजान हैं,
बंजर है सपनों की धरती
उम्मीदों का सूखा आसमान है।

फ़िक्र न कर सब ढल जाएगा
तेरा भी ऐसा कल आएगा,
याद करेगा बीते लम्हे
कोसेगा खुद को पछताएगा,
उस वक़्त लगेगा तुझको कि
इससे बेहतर श्मशान है,
बंजर है सपनों की धरती
उम्मीदों का सूखा आसमान है।







तेरे साथ मुझे जन्नत का एहसास होता है
जब भी मेरे हाथों में तेरा हाथ होता है,
इक बेचैनी सी रहती है तेरे बिना
अब तेरे ही ख्यालों में मेरा हर जज़्बात होता है।

मंजिले उन्हीं को मिलती हैं
जो जिंदगी रास्तों में काटते हैं,
अपनी खुशियां दांव पे लगा
वही खुशियां दूसरों में बांटते हैं।

कोशिशें जारी हैं मेरी कि
कभी तो उस खुदा का
मुझ पर करम होगा,
बनाना है मुझे वजूद अपना
तभी दूर सबका
भरम होगा।

मत कहना खुश हूँ मैं बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला है,
इस दिल में बसी थी जो तस्वीर उसकी
आंसुओं से मैंने उसे धो डाला है।

बाप – The Unlucky Man


बाप पर कविता
सपने जो देखे उसने सब
वो बेजान दिखाई देते थे,
बेबस सी वो झुकी हुयी दो आंखें देखी थीं मैंने
दबे हुए से कुछ उनमें अरमान दिखाई देते थे।
वो बाशिंदा इसी देश का था
तन लोहे सा अब हो गया था,
जाग के सारी रात काटकर
अपनी जवानी ढो गया था,
फिक्र उसे न थी अपनी बस
हालात दिखाई देते थे,
बेबस सी वो झुकी हुयी दो आंखें देखी थीं मैंने
दबे हुए से कुछ उनमें अरमान दिखाई देते थे।
चेहरे पे झुर्रियाँ आ गयी थीं
कोशिशें उसकी रंग ला गयी थीं,
इक बेटा अफसर बन गया था
गाड़ी लाल बत्ती की आ गयी थी,
उस बूढ़े के जीवन में अब
खुशियों के आसार दिखाई देते थे,
बेबस सी वो झुकी हुयी दो आंखें देखी थीं मैंने
दबे हुए से कुछ उनमें अरमान दिखाई देते थे।
हालात क्या बदले बदले दिल भी
बाप बोझ सा लगने लगा,
छोड़ गए सब तनहा उसको
घर बंधन सा लगने लगा,
पिता को अब हर अंधकार में
काल दिखाई देते थे,
बेबस सी वो झुकी हुयी दो आंखें देखी थीं मैंने
दबे हुए से कुछ उनमें अरमान दिखाई देते थे।
तकदीर भी उसकी क्या बनती
हाथ में जख्म हजार भरे
रेखा थी जो खुशियों की अब
बढ़ने का इंतजार करे
मिला न प्यार बेटे का उसको
बस ख्वाब दिखाई देते थे,
बेबस सी वो झुकी हुयी दो आंखें देखी थीं मैंने
दबे हुए से कुछ उनमें अरमान दिखाई देते थे।
लानत है ऐसे पूतों पर
बाप बोझ लगता जिनको,
लिखे जा रहे कर्म तेरे
भुगतेगा तू भी ये कल को,
बाप न दिखता है तुझको
तेरे लाल दिखाई देते हैं,
बेबस सी वो झुकी हुयी दो आंखें देखी थीं मैंने
दबे हुए से कुछ उनमें अरमान दिखाई देते थे।
दर-दर की ठोकर खायी थी
बेटे की ख़ुशी तब पायी थी,
आज वही ठोकर देखो
किस्मत फिर से ले आई है,
आज बाप को किए हुए जप
शाप दिखाई देते थे,
बेबस सी वो झुकी हुयी दो आंखें देखी थीं मैंने
दबे हुए से कुछ उनमें अरमान दिखाई देते थे।

खिल गई है मुस्कुराहट, उसके चेहरे पर आया है नूर
निहार-निहार चूमे माथा,लहर खुशी की छाया है सुरूर
गर्व से फूल गया है सीना ,बना है वह आज पिता 
अंश को अपने गोद में लेकर, फूला न समाया, जग जीता
सपने नए लगा है संजोने, पाया है सुख स्वर्ग समान 
तिनका-तिनका जोड़-जोड़, करने लगा नीड़ निर्माण 
बीमा, बचत, बैंकों  में खाते, योजना हुई नई तैयार
खेल-खिलौने,घोड़ा-गाड़ी, खुशियां मिली उसे अपार
सांझ ढले जब काम से आता ,लंबे-लंबे डग भरता
ममता, प्यार  हृदय में रखता ,जगजाहिर नहीं करता 
कंधों पर बैठा वो खेलता, कभी घोड़ा वह बन जाता 
हं सी, ठिठोली, रूठ ,मना कर, असीम सुख वह पाता
ढलने लगी है उम्र भी अब तो, अंश भी होने लगा जवां
पैरों के छाले नहीं देखता,लेता चैन नहीं अवकाश  
बच्चों की खुशियों की खातिर, हर तकलीफ़ रहा है झेल 
जूतों का अपने छेद छुपाता, मोटर गाड़ी का तालमेल
अनंत प्यार का सागर है यह,परिंदे का खुला आसमान 
अडिग हिमालय खड़ा हो जैसे,पिघले जैसे बर्फ समान 
 बड़ा अनोखा है ये जुलाहा, बुन रहा तागों को जोड़
सूत से नाते बांध रहा यह, लगा रहा दुनिया से होड़
होने लगी है हालत जर-जर, हिम्मत फिर भी रहा न हार
बेटी की शादी, बेटे का काम ,करने लग रहा जुगाड़
दर्द से कंधे लगे हैं झुकने,रीढ़ भी देने लगी जवाब 
खुश है रहता अपनी धुन में, देख संतान को कामयाब 
बेटी अब हो गयी पराई, बेटा भी परदेस गया
बाट जोहता रहता हर दिन,आएगा संदेस नया
खाली हाथ अब जेब भी खाली, फिर भी सबसे मतवाला
बन गया है धन्ना सेठ, ये जुलाहा, रखवाला...    















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